मैं शहनाज़ हूँ।
एक २६ साल की शादीशुदा औरत। गोरा रंग, खूबसूरत नाक-नक्श और जिस्म ऐसा कि कोई एक बार देख ले तो पाने के लिये तड़प उठे।
मेरा फिगर ३६-२८-३८ है। मेरा निकाह जावेद से दो साल पहले हुआ था। जावेद एक
बिज़नेसमैन है और निहायत ही हेंडसम और काफी अच्छी फितरत वाला आदमी है। वो मुझे बहुत
मोहब्बत करता है।
कुछ दिनों पहले
मेरे जेठ और जेठानी हमारे पास आये थे। जावेद ज्यादा से ज्यादा समय घर में ही रहने
की कोशिश करते थे। बहुत मज़ा आ रहा था। खूब हंसी मजाक चलता। देर रात तक नाच-गाने और
पीने-पिलाने का प्रोग्राम चलता रहता था। फिरोज़ भाईजान और नसरीन भाभी काफी खुशमिजाज़
थे। उनके निकाह को पांच साल हो गये थे मगर अभी तक कोई औलाद नहीं हुई थी। ये एक
छोटी सी कमी जरूर थी उनकी ज़िंदगी में मगर फिर भी वे खुश ही दीखते थे। एक दिन दोपहर
को खाने के साथ हम सब वाइन पी रहे थे।
मैंने कुछ ज्यादा
ही पी ली। मुझे बेडरूम में जा कर लेटना पड़ा। बाकी तीनों ड्राइंग रूम में गपशप कर
रहे थे। शाम तक यही सब चलना था इसलिये मैंने अपने कमरे में आकर फटाफट अपने सारे
कपड़े उतारे और एक हल्का सा फ्रंट ओपन गाऊन डाल कर बिस्तर पर गिर पड़ी। पता नहीं नशे
में चूर मैं कब तक सोती रही। अचानक कमरे में रोशनी होने से नींद खुली। मैंने
अलसाते हुए आँखें खोल कर देखा तो बिस्तर पर मेरे पास जेठ जी बैठे मेरे खुले बालों
पर मोहब्बत से हाथ फ़िरा रहे थे। मैं हड़बड़ा कर उठने लगी तो उन्होंने उठने नहीं
दिया।
“लेटी रहो,
शहनाज़” उन्होंने माथे पर अपनी हथेली रखते हुए कहा, “अब कैसा लग रहा है?”
“अब काफी अच्छा लग
रहा है।” तभी मुझे एहसास हुआ कि
मेरा गाऊन सामने से कमर तक खुला हुआ है और मेरी गोरी-चिकनी जांघें जेठ जी के सामने
नुमाया है। कमर पर लगे बेल्ट की वजह से मैं पूरी नंगी होने से बच गयी थी। मैं शरम
से एक दम पानी-पानी हो गयी। मैंने झट अपने गाऊन को सही किया और उठने लगी। जेठजी ने
अपनी बाँहों का सहारा दिया। मैं उनकी बाँहों का सहारा ले कर उठ कर बैठी लेकिन सिर
जोर का चकराया और मैंने सिर को अपने दोनों हाथों से थाम लिया। जेठ जी ने मुझे अपनी
बाँहों में भर लिया। मैंने अपने चेहरे को उनके सीने पर रख कर आँखें बंद कर लीं।
कुछ देर तक मैं यूँ ही उनके सीने में अपने चेहरे को छिपाये उनके जिस्म से निकलने
वाली खुश्बू अपने जिस्म में समाती रही। कुछ देर बाद उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में
संभाल कर मुझे बिस्तर के सिरहाने से टिका कर बिठाया। मेरा गाऊन वापस अस्त-व्यस्त
हो रहा था। जाँघों तक टांगें नंगी हो गयी थी।
मुझे याद आया कि
मेरी जेठानी नसरीन और जावेद नहीं दिख रहे थे। मैंने सोचा कि दोनों शायद हमेशा कि
तरह किसी चुहलबाजी में लगे होंगे या वो भी मेरी तरह नशे में चूर कहीं सो रहे
होंगे। फिरोज़ भाईजान ने मुझे बिठा कर सिरहाने के पास से ट्रे उठा कर मुझे एक कप
कॉफी दी।
“ये… ये आपने बनायी है?” मैं चौंक गयी क्योंकि मैंने कभी जेठ जी को किचन में घुसते
नहीं देखा था।
“हाँ! अच्छी नहीं
बनी है?” फिरोज़ भाई जान ने
मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा।
“नहीं नहीं! बहुत
अच्छी बनी है” मैंने जल्दी से
एक घूँट भर कर कहा, “लेकिन भाभीजान और
वो कहाँ हैं?”
“वो दोनों कोई
फ़िल्म देखने गये हैं… छः से नौ….
नसरीन जिद कर रही थी तो जावेद उसे ले गया है।”
“लेकिन आप?
आप नहीं गये?” मैंने हैरानी से पूछा।
“तुम्हारी तबीयत
ठीक नहीं लग रही थी। अगर मैं भी चला जाता तो तुम्हारी देखभाल कौन करता?” उन्होंने कहा।
मुझे बाथरूम जाना
था। मैं उनका हाथ थाम कर बिस्तर से उतरी। जैसे ही उनका सहारा छोड़ कर बाथरूम तक
जाने के लिये दो कदम आगे बढ़ी तो अचानक सर बड़ी जोर से घूमा और मैं लड़खड़ा कर गिरने
लगी। इससे पहले कि मैं जमीन पर गिर पड़ती, फिरोज़ भाईजान लपक कर आये और मुझे अपनी बाँहों में थाम लिया। मुझे अपने जिस्म
का अब कोई ध्यान नहीं रहा। उन्होंने मुझे अपनी बाँहों में फूल की तरह उठाया और
बाथरूम तक ले गये। मैंने गिरने से बचने के लिये अपनी बाँहों का हार उनकी गर्दन पर
पहना दिया। उन्होंने मुझे बाथरूम के भीतर ले जाकर उतारा।
“मैं बाहर ही खड़ा
हूँ। तुम्हे बाहर आना हो तो मुझे बुला लेना। संभल कर उठना-बैठना,” फिरोज़ भाईजान मुझे हिदायतें देते हुए बाथरूम के
बाहर निकल गये और बाथरूम के दरवाजे को बंद कर दिया। मैंने पेशाब कर के लड़खड़ाते हुए
अपने कपड़ों को सही किया जिससे वो फिर खुल कर मेरे जिस्म को बेपर्दा ना कर दें। मैं
अब खुद को कोस रही थी कि किसलिये मैंने अपने अंदरूनी कपड़े उतारे। मैं जैसे ही बाहर
निकली तो वो बाहर दरवाजे पर खड़े मिल गये। वो मुझे देख कर लपकते हुए आगे बढ़े और
मुझे अपनी बाँहों में भर कर वापस बिस्तर पर ले आये।
मुझे सिरहाने पर
टिका कर उन्होंने मेरे कपड़ों को अपने हाथों से सही कर दिया। मेरा चेहरा तो शरम से
लाल हो रहा था। उन्होंने साईड टेबल से एक एस्प्रीन निकाल कर मुझे दी। फिर वापस
मेरे कप में कुछ कॉफी भर कर मुझे दी और बोले, “लो इससे तुम्हारा हेंगओवर ठीक हो जायेगा।” मैंने कॉफी के
साथ दवाई ले ली।
“भाईजान, एक बात अब भी मुझे खटक रही है। वो दोनों आप को
साथ क्यों नहीं ले गये…। आप कुछ छिपा
रहे हैं… बताइये ना…।”
“कुछ नहीं शहनाज़,
मैं तुम्हारे कारण रुक गया।”
“नहीं! कुछ और बात
भी है जो आप मेरे से छुपा रहे हैं,” मैंने कहा।
मेरे बहुत जिद
करने पर वो धीरे धीरे खुलने लगे, “तुम्हे जावेद ने
कुछ नहीं बताया?”
“क्या?” मैंने पूछा।
“शायद तुम्हे बुरा
लगे। मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहता।”
“मुझे कुछ नहीं
होगा! आप कहिये तो…. क्या आप कहना
चाहते हैं कि जावेद और नसरीन भाभीजान के बीच …,” मैंने जानबूझ कर अपने वाक्य को अधूरा छोड़ दिया।
वो भोंचक्के से
कुछ देर तक मेरी आँखों में झाँकते रहे, “तुम कुछ जानती हो?”
“मुझे थोड़ा शक तो
था पर यकीन नहीं।”
“तुम….. तुमने कुछ कहा नहीं? तुम ने विरोध नहीं किया?” फिरोज़ ने पूछा।
“विरोध तो आप भी
कर सकते थे। आप तो उनसे बड़े हैं फिर भी आप ने उन को नही रोका,” मैंने उलटा उनसे ही सवाल किया।
“मैं दोनों को
बेहद चाहता हूँ और …”
“और क्या?”
“और….. ये हमारे लिये जरूरी था,” कहते हुए उन्होंने अपना चेहरा नीचे झुका लिया।
मैं उनका मतलब
समझ गई थी। मैं उस प्यारे इंसान की परेशानी देख अपने को रोक नहीं पायी। मैंने उनके
चेहरे को अपनी हाथों में ले कर उठाया। मैंने देखा कि उनकी आँखों के कोनों पर दो
आँसू चमक रहे हैं। मैं ये देख कर तड़प उठी। मैंने अपनी अँगुलियों से उनको पोंछ कर
उनके चेहरे को अपने सीने पर खींच लिया। वो किसी बच्चे की तरह मेरी छातियों से अपना
चेहरा सटाये हुए थे।
“डॉक्टर ने कोई और
रास्ता नहीं बताया?” मैंने उनके बालों
में अपनी अँगुलियाँ फ़िराते हुए पूछा।
“और कोई रास्ता
नहीं था। और नसरीन को किसी अनजान आदमी से बच्चा हासिल करने से ज्यादा मुनासिब ये
लगा, … और मुझे भी यही ठीक लगा!”
वो बोले।
मुझे कुछ समझ में
नहीं आ रहा था कि यह ठीक हो रहा है कि गलत। एक तरफ मुझे दुःख था कि मेरा शौहर एक
पराई औरत के साथ हमबिस्तर हो रहा था पर मैं यह भी समझ रही थी कि वो यह अपने लुत्फ़
के लिये नहीं कर रहा था। वो यह अपने भाई और भाभी की मदद के लिये कर रहा था। …
लेकिन क्या यह मदद कोई और नहीं कर सकता था?
… शायद मैं खुदगर्जी से सोच रही हूं! नसरीन भाभी
और फिरोज़ भाईजान किसी अनजान मर्द की औलाद नहीं चाहते। … इस में गलत क्या है? भाईजान को पता है कि उनकी बीवी जावेद के साथ … उन्हें कुछ अफ़सोस भले ही हो पर ऐतराज़ नहीं है।
मुझे भी ऐसे ही सोचना चाहिए … हालांकि यह आसान
नहीं है।
जावेद और नसरीन
भाभी रात के दस बजे तक चहकते हुए वापस लौटे। होटल से खाना पैक करवा कर ही लौटे थे।
मेरी हालत देख कर जावेद और नसरीन भाभी घबरा गये। बगल में ही एक डॉक्टर रहता था उसे
बुला कर मेरी जाँच करवायी। डॉक्टर ने देख कर कहा कि डी-हाइड्रेशन हो गया है और जूस
वगैरह पीने को कह कर चले गये।
अगले दिन सुबह
मेरी तबियत एकदम सलामत हो गयी। अगले दिन जावेद का जन्मदिन था। शाम को बाहर खाने का
प्रोग्राम था। एक बड़े होटल में टेबल पहले से ही बुक कर रखी थी। वहां पहले हम सब ने
शैम्पेन पी और फिर खाना खाया। जावेद ने वापस लौट कर घर में ही एक फ़िल्म देखने का
प्रोग्राम बनाया था। घर पहुँच कर हम चारों हमारे बेडरूम में इकट्ठे हुए। वहां सब
मिल कर शार्डोने पीने लगे। मुझे सबने मना किया कि पिछले दिन मेरी तबियत वाइन पीने
से ही खराब हुई थी पर मैं कहाँ मानने वाली थी। मैंने भी ज़िद करके उनके साथ और
ड्रिंक्स लीं। फिर जावेद ने म्यूज़िक चलाया और नसरीन भाभी को अपने साथ डांस करने की
दावत दी।
नसरीन भाभी को
जावेद की बाँहों में नाचते देख कर मुझे जाने कैसा लगा। मैंने भाईजान की तरफ देखा।
उनका चेहरा भी कुछ मेरे जैसा ही दिख रहा था। उनको तसल्ली देने के लिये मैंने उनको
मेरे साथ डांस करने के लिये इशारा किया। कुछ देर तक दोनों भाई एक दूसरे की बीवियों
के साथ डाँस करते रहे। मुझे जेठ जी की बाँहों में आ कर अजीब सी फीलिंग हो रही थी।
यह पहला मौका था कि मैं अपने शौहर के बजाय किसी और मर्द की बाहों में थी। कुछ देर
बाद जावेद ने कमरे की ट्यूबलाईट ऑफ कर दी और सिर्फ एक नाईट लैंप जला दिया। हम
चारों बिस्तर पर बैठ गये। जावेद ने डी-वी-डी ऑन कर के फ़िल्म चला दी। हम चारों
बिस्तर के सिरहाने पर पीठ लगा कर बैठ गये। एक किनारे पर जावेद बैठा था और दूसरे
किनारे पर फिरोज़ भाईजान थे। बीच में हम दोनों औरतें थीं। यह एक ब्लू फिल्म थी। मैं
पहली बार किसी गैर मर्द और औरत के साथ ऐसी फिल्म देख रही थी। मुझे शर्म तो आ रही
थी पर वाइन के असर से शर्म हावी नहीं हुई थी।
दोनों भाइयों ने
नशे की मस्ती में अपनी-अपनी बीवियों को अपनी बाँहों में समेट रखा था। फिल्म
जैसे-जैसे आगे बढ़ती गयी, कमरे का माहौल
गरम होता गया। दोनों मर्द बिना किसी शरम के अपनी अपनी बीवियों के जिस्म को मसलने
लगे। जावेद मेरे मम्मों को मसल रहा थे और फिरोज़ भाई भाभी के। जावेद ने मुझे उठा कर
अपनी टाँगों के बीच बिठा लिया। मेरी पीठ उनके सीने से सटी हुई थी। वो अपने दोनों
हाथ मेरे गाऊन के अंदर डाल कर अब मेरे मम्मों को मसल रहे थे। मैंने देखा फिरोज
भाईजान के हाथ भी नसरीन भाभी के गाऊन के अंदर थे। कुछ देर बाद हम दोनों के गाऊन
कमर तक उठ गये थे और नंगी जाँघें सबके सामने थीं। जावेद अपने एक हाथ को नीचे से
मेरे गाऊन में घुसा कर मेरी चूत को सहलाने लगे। मैं अपनी पीठ पर उनके लंड के कड़ेपन
को महसूस कर रही थी।
फिरोज़ भाई ने
भाभी के गाऊन को सीने से ऊपर उठा दिया था और वे एक मम्मे को चूस रहे थे। ये देख कर
जावेद ने भी मेरे एक मम्मे को गाऊन के बाहर निकालने की कोशिश की। मैंने विरोध किया
तो उन्होंने मेरे गाऊन को ही मेरे जिस्म से अलग कर दिया। अब मैं सबके सामने
बिल्कुल नंगी थी। मैं शरम के मारे अपने हाथों से अपने मम्मों को छिपाने लगी।
“क्या कर रहे हो?
फिरोज़ भाईजान बगल में हैं…. तुमने उनके सामने मुझे नंगी कर दिया! क्या
सोचेंगे जेठ जी?” मैंने फुसफुसाते
हुए जावेद के कानों में कहा।
“सोचेंगे क्या?
उन्होंने भी तो भाभी को लगभग नंगी कर दिया है।
देखो तो …”
मैंने अपनी गर्दन
घूमा कर देखा तो पाया कि जावेद सही कह रहा था। फिरोज़ भाईजान ने भाभी के गाऊन को
छातियों से भी ऊपर उठा रखा था। वो भाभी की चूचियों को मसले और चूसे जा रहे थे। वो
एक निप्पल को अपनी जीभ से सहलाते हुए दूसरे को अपनी मुठ्ठी में भर कर मसल रहे थे।
नसरीन भाभी ने भी फिरोज़ भाई का पायजामा खोल कर उनके लंड को अपने हाथों से सहलाना
शुरू कर दिया।
इधर जावेद मेरी
टाँगों को फैला कर अपने होंठ मेरी चूत के ऊपर फ़ेरने लगा। उसने ऊपर बढ़ते हुए मेरे
दोनों निप्पल को कुछ देर चूसा और फिर मेरे होंठों को चूमने लगा। नसरीन भाभी के हाथ
में फिरोज भाई के लंड को देख कर जावेद ने मेरे हाथों को अपने लंड पर रख कर सहलाने
का इशारा किया। मैंने भी नसरीन भाभी की देखा-देखी जावेद के पायजामे को खोल कर उनके
लंड को बाहर निकाल लिया और उसे सहलाने लगी। फिरोज़ भाई की निगाहें अपने जिस्म पर
देख कर मैं शर्मा रही थी। मुझे लगा कि मेरे नंगे जिस्म को देख कर उनका लंड झटके खा
रहा था। अब हम चारों एक दूसरे की जोड़ी को निहार रहे थे। पता नहीं टीवी स्क्रीन पर
क्या चल रहा था। सामने लाईव ब्लू फ़िल्म इतनी गरम थी कि टीवी पर देखने की किसे
फ़ुर्सत थी।
दोनों जोड़े अपने
शौहर/बीवी के साथ सैक्स के खेल में लगे थे मगर दूसरे जोड़े की मौजूदगी सब का रोमांच
बढ़ा रही थी। फिरोज़ ने बेड पर लेटते हुए नसरीन भाभी को अपनी टाँगों के बीच खींच
लिया और उनके सिर को पकड़ कर अपने लंड पर झुकाया। नसरीन भाभी ने उनके लंड पर झुकते
हुए हमारी तरफ़ देखा। उनकी नजरें मेरी नजरों से मिली तो उन्होंने मुझे प्रश्नवाचक
दृष्टि से देखा। शायद अकेले मुंह में लंड लेने में वे हिचक रही थी। मैं भी जावेद
के लंड पर झुकी तो भाभी ने फिरोज़ भाई का लंड अपने मुंह में ले लिया। मैं भी जावेद
के लंड को अपने मुँह में ले कर चूसने लगी। इस दौरान हम चारों बिल्कुल नंगे हो चुके
थे।
“जावेद, लाईट बंद कर दो…. मुझे शर्म आ रही है,” मैंने जावेद को फुसफुसाते हुए कहा।
“इसमें शर्म की
क्या बात है? सब अपने ही लोग
तो हैं,” कह कर उन्होंने फिरोज़ भाई
और नसरीन भाभी की ओर इशारा किया। मैंने उनकी ओर देखा तो दोनों लंड चूसने-चुसवाने
में लिप्त थे। नसरीन भाभी बड़ी एकाग्रता से लंड चूस रही थीं। नाईट लैंप की रोशनी
में उनका नंगा जिस्म बहुत मनमोहक लग रहा था।
जावेद ने मुझे
अपने ऊपर खींच लिया। वो ज्यादा लंबा फोर-प्ले पसंद नहीं करते थे। थोड़े से फोर-प्ले
के बाद वो चूत के अंदर लंड घुसा कर अपनी सारी ताकत चोदने में लगा देते थे।
उन्होंने मुझे चूत में लंड लेने के लिये इशारा किया। मैं उनकी कमर के पास घुटनों
के बल बैठ गई। उनके लंड को हाथ से अपनी चूत के द्वार पर एडजस्ट करके मैं अपने
जिस्म को धीरे-धीरे नीचे लाने लगी। उनका लंड आहिस्ता-आहिस्ता मेरी चूत के अंदर घुस
गया। मैंने पास में दूसरे जोड़े की ओर देखा। नसरीन भाभी भी फिरोज भाई की सवारी कर
रही थीं।
जावेद मेरे
मम्मों को अपने हाथों में भर कर दबाने लगे। फिरोज़ भाई भी प्यार से भाभीजान के
मम्मों पर हाथ फ़ेर रहे थे। अब हम दोनों औरतें अपने-अपने हसबैंड के लंड की सवारी कर
रही थीं। ऊपर नीचे होने से दोनों की चूचियाँ उछल रही थीं। जावेद के हाथों की मालिश
अपने मम्मों पर पा कर मेरे धक्के मारने की रफ़्तार बढ़ गयी। मैं चुदाई की मस्ती
में “आऽऽह.. ऊहऽऽऽ..” करते फुदक रही थी। नसरीन भाभी का हाल भी मेरे से अलग नहीं था। दोनों भाई आराम
से लेटे हुए हमारी मेहनत का मज़ा ले रहे थे।
नसरीन भाभी को
ज्यादा देर यह गवारा नहीं हुआ। उन्होंने मुझ से कहा, “अब सारा काम हमें ही करना होगा या ये आलसी भाई भी कुछ
करेंगे?”
यह सुन कर फिरोज़
भाई की गैरत जागी और उन्होंने भाभीजान को नीचे उतार कर कोहनी और घुटनों के बल झुका
दिया। ये देख कर जावेद ने भी मुझे उलटा कर के उसी पोज़िशन में कर दिया। सामने आईना
लगा हुआ था। हम दोनों जेठानी देवरानी पास-पास घोड़ी बनी हुई थीं। दोनों भाइयों ने
अपने लंड हमारी चूत में घुसा कर एक रिदम में हमें पीछे से ठोकना शुरू कर दिया।
पीछे से धक्के बड़े ज़ोरदार लगते हैं। धक्कों के साथ हमारे मम्मे एक साथ आगे पीछे
हिल रहे थे। हम दोनों एक दूसरे को नज़दीक देख कर और ज्यादा उत्तेजित हो रहीं थीं।
कुछ देर के बाद
फिरोज भाई ने अचानक भाभीजान से पूछा, “नसरीन, तुम्हारा फर्टाइल पीरियड
(गर्भाधान के लिये बिलकुल उपयुक्त समय) कब शुरू होगा?”
भाभीजान,
“आपने अच्छा याद दिलाया। आज ही शुरू हुआ है।”
फिरोज अपने धक्के
रोक कर बोले, “फिर तो हमें ये
मौका गंवाना नहीं चाहिए! क्यों, जावेद?”
जावेद ने भी
चुदाई रोक दी थी। वो थोडा अचरज से बोला, “लेकिन …”
नसरीन भाभी ने भी
कुछ बोलने की कोशिश की पर उनकी बात काटते हुए फिरोज भाई बोले, “तुम दोनों को फ़िक्र करने की की जरूरत नहीं है।
मैंने शहनाज़ को सब बता दिया है। उसे ये जान कर थोडा दुःख तो हुआ पर अब वो भी
रज़ामंद है।”
मैं सोच रही थी
कि मैंने भाईजान को रजामंदी तो नहीं दी थी। हां, मैंने इस तजबीज का विरोध भी नहीं किया था और इसी को शायद
फिरोज भाई मेरी रजामंदी समझ रहे थे। फिर मैंने सोचा कि कहीं फर्टाइल पीरियड के
कारण ही तो ये दोनों यहाँ नहीं आये हैं? मुझे याद आया कि पिछले महीने और उस से पिछले महीने जावेद लगभग इन्ही तारीखों
को फिरोज भाई के घर गये थे! लेकिन अब क्या हो सकता था सिवाय इस के कि मैं अपने
शौहर को नसरीन भाभी को चोदते देखूं। मेरा दिल कर रहा था कि मैं उठ कर कमरे से बाहर
चली जाऊं। मुझे पता नहीं था कि फिरोज भाई बाहर जायेंगे या वहीँ रहेंगे।
तभी फैसला हो गया।
फिरोज भाई पीछे हठ कर बोले, “जावेद, आ जाओ।”
उनकी जगह जावेद
ने ले ली और फिरोज भाई नसरीन भाभी और मेरे बीच लेट गये। जावेद ने अपना ‘काम’ शुरू कर दिया। मैं सोच रही थी कि मैं बाहर जाऊं या नहीं लेकिन फिर मुझे लगा कि
अगर फिरोज भाई अपने सामने अपनी बीवी को चुदते देख सकते हैं तो मुझ में भी ये
हिम्मत होनी चाहिए। मैं फिरोज भाई की बगल में बैठ कर जावेद और नसरीन भाभी की चुदाई
देखने लगी। जावेद पूरी तन्मयता से नसरीन भाभी को चोद रहा था और भाभीजान भी
लुत्फ़अन्दोज़ नज़र आ रही थीं। फिरोज भाई हसरत भरी निगाहों से भाभीजान को चुदते देख
रहे थे … और उनका लंड बेचैनी से छत
की तरफ देख रहा था। बेचैन मैं भी थी क्योंकि मुझ से चुदाई के बीच लंड छिन गया था
और अब उसी लंड को नसरीन भाभी की चूत की खिदमत करते देख मैं और भी उत्तेजित हो गई
थी। कुछ देर बाद फिरोज भाई का ध्यान अपने बेचैन लंड की ओर गया और वे उसे अपनी
मुट्ठी में ले कर मसलने लगे। यकीनन वे नसरीन भाभी को चोदने के ख्वाहिशमंद थे पर
मजबूरी में कुछ कर नहीं पा रहे थे। तभी भाभीजान की नज़र उन पर पड़ी और वे बोलीं,
“ये क्या कर रहे हैं आप? बेचारी शहनाज़ बेकरार है और आप उसकी जरूरत पूरी करने की बजाय
अपने हाथ का इस्तेमाल कर रहे हैं!”
यह सुन कर मैं
चौंक पड़ी। यह सच था कि फिरोज भाई के ताक़तवर और सुडौल लंड को देख कर मेरे मन में
एक बार लालच आया था पर मैंने अपने लालच पर काबू पा लिया था। मैंने कहा, “ये क्या कह रहीं है आप, भाभीजान!”
“मैं वही कह रही
हूं जो मुझे कहना चाहिये” भाभीजान बोलीं,
“बल्कि यह तो मुझे पहले सोचना चाहिए था। जब तुम
और जावेद हमारी जिंदगी में खुशी लाने के लिये इतना कुछ कर रहे हो तो मेरा भी फ़र्ज़
बनता है कि मैं तुम्हारी जरूरतों का ध्यान रखूँ।”
“इसकी कोई जरूरत
नहीं है, भाभीजान” मैंने दिल पर पत्थर रखते हुए कहा, “अगर जावेद के कारण आपके परिवार में खुशियाँ आती
हैं तो मुझे भी तो अच्छा लगेगा।”
“नसरीन भाभी ठीक
कह रही हैं, शहनाज़” जावेद मेरी तरफ देखते हुए बोला, “हम यह काम मज़े के लिये नहीं कर रहे हैं पर मज़ा
तो आ ही रहा है न! भाभीजान और मैं चाहते हैं कि तुम भी इस मज़े से वंचित नहीं रहो?
और फिरोज भाई को भी इसमें कोई ऐतराज़ नहीं होना
चाहिए, क्यों भाईजान?”
फिरोज भाई कुछ
जवाब देते उस से पहले मैंने कहा, “भाईजान को तकलीफ
देने की क्या जरूरत है?” तुरंत मेरे दिमाग
में आया कि यह क्या बोल दिया मैंने! एक मर्द को किसी औरत को चोदने में भला कभी
तकलीफ होती है – फिर वो औरत भले
ही उसके भाई की बीवी हो! अभी जावेद ने कहा ही है न कि उसे नसरीन भाभी को चोदने में
मज़ा आ रहा है। दरअसल मैं बड़ी दुविधा में थी। नसरीन भाभी और जावेद की चुदाई देख कर
मैं भी चुदने के लिये मचल रही थी। फिरोज भाई का बलिष्ठ लंड भी मुझे ललचा रहा था पर
अपने जेठजी से चुदने में मैं हिचक रही थी।
तभी फिरोज भाई
जावेद और भाभीजान से मुखातिब हो कर बोले, “तुम दोनों शहनाज़ की जिस्मानी जरूरत को समझ रहे हो यह अच्छी बात है पर यह भी तो
सोचो कि मेरा छोटा सा लंड उसकी जरूरत को पूरा कर पायेगा क्या?”
मेरे मुंह से
तुरंत निकला, “यह क्या कह रहे
हैं आप? आपके लं..”
हाय अल्ला,
… यह क्या कह गई मैं? मैं कहने वाली थी कि आपके लंड को छोटा कौन कह सकता है!
अच्छा हुआ मैंने आखिरी शब्द को पूरा नहीं किया। पर भाईजान ने हम सब के सामने यह
शब्द बोल दिया! बहरहाल इस एक शब्द से पूरा माहौल बदल गया था।
जावेद ने हँसते
हुए कहा, “रुक क्यों गई? तुम भाईजान के लंड के बारे में कुछ कह रही थी
ना!”
अब नसरीन भाभी भी
कहाँ पीछे रहने वाली थीं। उन्होंने कहा, “भई, अब शहनाज़ को वो पसंद नहीं
है तो नहीं है!”
मैंने शर्मा कर
अपना चेहरा फिरोज भाई के सीने में छुपा लिया। वे मेरे बालों पर हाथ फेरते हुए बोले,
“नसरीन, अगर तुम्हे ये पसंद होता तो तुम क्या करतीं?”
भाभी बोली,
“मैं तो इसे मुंह में ले कर प्यार करती।”
अब जावेद के
बोलने की बारी थी, “भाभीजान, अगर शहनाज़ को ये पसंद है तो वो भाईजान के ऊपर आ
जायेगी।
अब हिचकने का
वक्त नहीं था। थोड़ी मदद जावेद और भाईजान ने भी की। दोनों ने मेरी एक-एक बांह पकड़ी
और मुझे पोजीशन में आने के लिये उकसाया। मैंने भी शर्म छोड़ कर पोजीशन ले ली –
फिरोज भाई के लंड पर। और एक बार फिर शुरू हो गई
जेठानी और देवरानी की चुदाई। फर्क यह था कि इस बार देवरानी जेठ से चुद रही थी और
जेठानी देवर से!
कुछ देर तक इसी
तरह चोदने के बाद फिरोज भाई ने मुझे अपने ऊपर से उठा कर बिस्तर पर चित लिटाया।
मेरी दोनों टाँगें उठा कर वे उनके बीच बैठ गये। अपने लंड को मेरी चूत पर रख कर
उन्होंने एक तगड़ा धक्का लगाया और लंड मेरी चूत की गहराइयों में उतर गया। जावेद ने
भी नसरीन भाभी को अपने नीचे लिया और अपना लंड उनकी चूत में प्रविष्ट कर दिया। अब
दोनों भाई हमें मिशनरी स्टाईल में चोदने लगे। इस तरह चुदाई करते हुए हमारे जिस्म
एक दूसरे से टकरा कर और अधिक उत्तेजना का संचार कर रहे थे। मैं नसरीन भाभी की बगल
में लेटी हुई उनको जावेद से चुदते देख रही थी पर अब मुझे कोई ईर्ष्या नहीं हो रही
थी। होती भी कैसे? मैं भी तो उनके
शौहर के जानदार लंड का पूरा मज़ा ले रही थी। नसरीन भाभी ने मेरा हाथ अपने हाथ में
लिया और हम दोनों एक दूसरे की तरफ प्यार से देखने लगीं।
उधर दोनों भाई
बिलकुल बदहवास लग रहे थे। उनकी आँखें बंद थीं और वे ‘आह’ ‘ओह’ करते हुए अंधाधुन्ध धक्के मार रहे थे। नसरीन
भाभी अब झड़ने वाली थी। वे उत्तेजना से सिसक रही थीं, “हाँ..! हाँऽऽ..! और जोर से…! उई माँ…! निकाल दो,
जावेद! मैं झड रही हूं…!” उनकी कमर बुरी तरह उचक रही थी। कुछ पल के लिये
उनका शरीर अकडा और फिर वो बेजान सी हो कर बिस्तर पर गिर पड़ीं। जावेद का जिस्म अभी
भी अकडा हुआ था और फिर वो भी निढाल हो कर भाभी पर पसर गया।
इधर हम दोनों भी
तेज़ी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे। भाईजान के धक्के अब धुआंधार हो चले थे और मैं
भी उछल-उछल कर उनके धक्कों का जवाब दे रही थी। ताबड़तोड़ धक्कों के बीच फिरोज भाई
बोले, “बस शहनाज़…, मैं अब झड़ने वाला हूं! आह..! आह..!”
“आ जाइये, भाईजान!” मैंने हाँफते हुए किसी तरह जवाब दिया, “निकाल दीजिए…! मैं भी तैयार हूं!”
और इसी के साथ उनके लंड से वीर्य की गर्म धार मेरी चूत के अंदर बहने लगी। मैंने भी अपने रस का द्वार खोल दिया। … हम दोनों अब एक दूसरे की बांहों में लेटे हुए गहरी सांसें ले रहे थे। … जब फिरोज भाई मेरे ऊपर से उतरे तो भाभी ने प्यार से मेरा हाथ पकड़ कर पूछा, “तुम खुश तो हो, शहनाज़?” जवाब में मैंने उनकी ओर पलट कर उन्हें अपनी बांहों में भींच लिया। पीछे से फिरोज भाई मुझ से चिपक गये और जावेद नसरीन भाभी से।
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