यह बात उन दिनों
की है जब मैं २० वर्ष का था। हमारा घर दो मंजिल का बना हुआ है, जिसमें ऊपर की मंजिल में मैं, मेरे मम्मी-पापा और मेरा छोटा भाई रहते थे और
नीचे की मंजिल पर आगे के दो कमरों को गोदाम के रूप में किराये पर दे रखा था और
पीछे के दो कमरों में मेरे दूर के रिश्ते के मामा-मामी रहते थे। मेरे पापा और मामा
एक ही कंपनी में काम करतेर थे जिसकी पूरे देश में कई शाखाएँ थी, इस कारण वे लोग ज्यादातर टूर पर ही रहते थे।
मेरी मम्मी एक
कुशल गृहणी होने के साथ-साथ एक कुशल समाज-सेविका भी हैं। घर के काम-काज निबटाकर वे
सुबह १० बजे से शाम ५ बजे तक समाज-सेवा में व्यस्त रहती हैं, छोटा भाई नेवी में कोस्ट-गार्ड की ट्रेनिंग के
लिए विशाखापत्तनम गया हुआ था और में कॉलेज में बी.कॉम. अन्तिम वर्ष की पढ़ाई कर
रहा था।
एक दिन सुबह ८
बजे मैं कॉलेज जाने के लिए निकला और बस पकड़ी, आधे रास्ते में याद आया कि लायब्ररी की किताब तो मामी ने
पढ़ने के लिए ली थी, आज वापिस करने की
आखिरी तारीख है। घर जाकर किताब लेकर वापिस समय पर कॉलेज पहुँच सकता हूँ, यह सोचकर रास्ते में बस छोड़ दी और वापसी की बस
पकड़कर घर आ गया। दहलीज पार करके जैसे ही मामी के कमरे के पास पहुंचा तो मुझे कुछ
खुसफ़ुसाने की आवाजें सुनाई दी। मैं ठिठककर रुक गया और ध्यान लगाकर सुनने लगा।
मामी किसी से कह
रही थी- अभी तुम परसों ही तो आये थे, इतनी जल्दी कैसे?
किसी आदमी की
आवाज सुनाई दी- मेरी जान, आज तो तुम्हारे
पिताजी यानि मेरे ताऊजी ने भेजा है ये सामान लेकर, और सच कहूँ ! मेरे मन भी बहुत कर रहा था। कल शाम जब से
ताऊजी ने बोला कि श्याम कल ये सामान उर्मिला को दे आना। तब से बस यही मन कर रहा था
कि कब सवेरा हो और मैं उड़ कर तुम्हारे पास पहुंचूं और तुम्हारी गुद्देदार चूचियों
को मुंह में लेकर चूसूँ और अपनी प्यास बुझाऊँ।
मामी बोली- अभी
परसों ही तो चोद कर गए हो, इतनी जल्दी फिर !
श्याम बोला- अरे
जालिम ! तेरी चूत है ही इतनी प्यारी ! अगर मेरा बस चले तो मैं तो अपना लंड हर वक्त
इसी में डाले पड़ा रहूँ !
मामी और श्याम की
बातें सुनकर मैंने अंदाजा लगा लिया था कि घर में कोई न होने सबसे ज्यादा फायदा इन
लोगों ने ही उठाया है।
मैं कुछ और सोचता,
इससे पहले मामी की आवाज सुनाई दी- सुनो श्याम,
आज जरा चूसा-चासी न करके जल्दी करना, जीजी आज जल्दी वापिस घर आएँगी क्योंकि जीजाजी
और ये (मामा) टूर से आज वापिस आने वाले हैं।
श्याम बोला- मेरी
रानी तुम हुक्म तो करो, तुम जैसे चाहोगी
वैसे ही चुदाई का कार्यक्रम बना दिया जायेगा।
मैंने मन में ठान
ली कि आज तो ब्लू फिल्म का लाइव टेलीकास्ट देख कर ही मानूंगा। मैं बिना कोई आहट
किये बगल वाली खिड़की के पास चला गया, वह थोड़ी सी खुली हुई थी, शायद उन लोगो को
इस बात का एहसास भी नहीं होगा कि कोई भी घर पर आ सकता है, उस जगह से अन्दर का सब साफ़ दिखाई पड़ रहा था।
मामी काले रंग के
ब्लाउज पेटीकोट में थी, सिर पर तौलिया
लपेटा हुआ शायद अभी नहाकर आई थी, तभी यह श्याम आ
गया होगा। श्याम खड़े-खड़े ही दोनों हाथों से मामी की चूचियों से खेल रहा था।
धीरे-धीरे उसने मामी के ब्लाउज के हुक खोलकर उसे शरीर से अलग कर दिया, मामी अन्दर ब्रा भी काले रंग की पहन रखी थी
उसने उसे भी उतार दिया। इस बीच वह मामी के शरीर को चूमता भी जा रहा था। फिर उसने
पेटीकोट भी उतार दिया, मामी उसके सामने
बिलकुल निर्वस्त्र खड़ी थी।
मामी का मांसल
शरीर ३८-२६-३८ का था। श्याम ने उन्हें पकड़कर धीरे से पलंग पर लिटाया और फ़टाफ़ट
से अपने सारे कपड़े उतार दिए। फिर उसने मामी की टांगों को चौड़ा किया, टाँगें चौड़ी होते ही उसके मुंह से निकला,
“क्या बात है जानेमन ! आज तो तुमने बड़ी सफाई कर
रखी है? परसों तो यहाँ पर जंगल
उगा हुआ था।
मामी बोली- आज ये
आने वाले है न इसीलिए अभी-अभी साफ़ करके आई हूँ, कर कुछ नहीं पाते पर सफाई पूरी चाहिए।
श्याम बोला- कोई
बात नहीं मेरी जान ! हम तो है न तुम्हारी सेवा में ! अभी तुम्हारी खुजली मिटाते
हैं !
कहते हुए अपना
मुंह चूत पर ले गया और जीभ से मामी की चूत की फांको का रस चूसने लगा। इस चुसाई से
मामी मस्त होने लगी और कमर को धीरे-धीरे ऊपर-नीचे करने लगी। श्याम उठा और अपने
अध-खड़े लंड को मामी की चूत पर घिसने लगा जिससे उसका लंड एकदम से टाइट हो कर खड़ा
हो गया। उसने जल्दी से उसे चूत के मुहाने पर लगा धक्का मारा। एक ही झटके में पूरा
का पूरा लंड मामी की चूत में समां गया।
मामी ने हलकी सी
सित्कारी भरी, धीरे-धीरे वो भी
श्याम के धक्कों का जवाब धक्कों से देने लगी।
१५-२० धक्कों के
बाद ही श्याम बोला- मेरी रानी, अब मैं झड़ने
वाला हूँ, संभालो !
मामी बोली- आजा
मेरे राजा ! एक बूँद भी बाहर नहीं निकलने दूँगी !
इतने में श्याम
ने आखरी झटका मारा और पस्त होकर मामी के ऊपर ही लेट गया। फिल्म की समाप्ति
होते-होते मेरा हथियार भी पैन्ट में तन कर खड़ा हो गया था। मन तो कर रहा था कि अभी
अन्दर जाऊँ और श्याम को हटाकर मैं भी जुट जाऊं पर मैंने वहां से निकल लेने में ही
भलाई समझी।
घर से निकल कर
कॉलेज गया पर वहाँ पर मन नहीं लगा। आँखों के सामने वही सीन घूम रहा था। अंत में
मैं घर वापिस आया, देखा कि मामी ने
कपड़े बदल लिए थे। अब वो हरे रंग की साड़ी पहने हुए थी, मम्मी भी घर में ही थी।
मैं चुपचाप ऊपर
चढ़ा और अपने कमरे की ओर चल दिया। मम्मी रसोई में कुछ बना रही थी, एकदम पलटी तो मुझे देखकर बोली- अरे संजू क्या
हुआ ? तू जल्दी कैसे आ गया,
अभी तो २ ही बजे हैं?
मैं बोला- कुछ
नहीं मम्मी ! एक तो प्रोफ़ेसर नहीं आये थे और मुझे भी कुछ कमजोरी सी महसूस हो रही
थी। रात को देर तक पढ़ा था ना।
मम्मी बोली- कोई
बात नहीं बेटा, तू आराम कर ले,
मैं तेरे लिए चाय बनाकर लाती हूँ।
चाय पीकर मैं लेट
गया, आँखे बंद करते ही फिर वही
सीन मेरी आँखों के आगे तैरने लगे। आँख लगने ही जा रही थी कि मम्मी की आवाज सुनाई
दी- उर्मिला !(मेरी मम्मी मामा से काफी बढ़ी थी इसी कारण वो मामी को उनके नाम से
ही बुलाती थी) मैं जरा बाहर जा रही हूँ, ५ बजे तक आ जाउंगी, संजू की तबियत
ठीक नहीं है तुम जरा उसके पास ही बैठना।
मामी बोली- अच्छा
जीजी।
यह सब सुनते ही
मेरे मन का शैतान जग उठा। यही मौका है मामी को सेट करने का।
मैंने फ़ौरन कपडे
उतारे, सिर्फ लुंगी बनियान में
पलंग पर लेट गया। थोड़ी देर में मामी आ गई, बोली- क्या हुआ संजू?
मैं बोला- कुछ
नहीं मामी, सिर बड़ा दर्द कर रहा है
और शरीर भी टूट रहा है।
मामी सिरहाने पर
बैठती हुई बोली- आ मैं तेरा सिर दबा देती हूँ।
कहते हुए
उन्होंने मेरा सिर अपनी गोदी में रख लिया और सहराने लगी कुछ देर बाद ही मैंने धीरे
से एक हाथ उठाकर उनकी गर्दन पर रख दिया। मेरी कोहनी उनकी चूचियों से टकरा रही थी,
उन्होंने कुछ नहीं कहा, मेरी हिम्मत बढ़ी, मैंने हाथ धीरे-धीरे सरका कर उनकी चूचियों पर टिका दिया और अंदाजे से उनके
निप्पल को मसल दिया। वो शायद सोते से जागी, मेरा हाथ हटाते हुए बोली- क्या कर रहे हो संजू? बहुत बदतमीज हो गए हो आने दो तुम्हारी मम्मी को
उन्हें बताउंगी।
एक बार तो मैं डर
गया, लेकिन एकदम से हिम्मत
करके बोला- तुम क्या बताओगी आज तो मैं ही तुम्हारे और श्याम के बीच में पकने वाली
खिचड़ी का पर्दाफाश कर दूंगा, मैंने सुबह सब
देखा और सुना थ।
यह सुनकर मामी के
होश उड़ गए, वो धम से पलंग पर
बैठ गई। मैंने अपना तीर निशाने पर लगता देखा, पास जाकर बोला- यदि तुम मुझे खुश कर दोगी तो मैं मम्मी को
या किसी और को कुछ नहीं बताऊंगा !
मामी मेरी बात
पता नहीं सुन रही थी या नहीं, वो तो एकदम से
निर्जीव होकर बैठी हुई थी, मेरे सिर पर तो
शैतान सवार था, मैंने उस बात को
मौन स्वीकृति समझ उनकी चुचियों से खेलना शुरू कर दिया, ब्लाउज के हुक खोलकर ब्रा ऊपर उठाकर मैंने चूचियों को चूसना
शुरू कर दिया। फिर धीरे से मैंने उनके शरीर से सारे कपड़े उतार दिए, उन्होंने कपड़े उतारने में मेरा साथ साथ दिया
एक चाबी वाली गुडिया की तरह।
मैंने उन्हें
सीधा लिटा दिया और श्याम की तरह उनकी चूत चाटने लगा। शुरू में तो बड़ा अजीब लगा पर
धीरे-धीरे स्वाद आने लगा। इस बीच मेरा लंड तनकर खड़ा हो गया था। मैंने लंड को उनकी
चूत पर टिकाया और धक्का मार दिया। मेरा लंड श्याम की अपेक्षा ज्यादा मोटा और लम्बा
था, एक बार में आधा ही जा पाया। मामी सीत्कार उठी पर चुपचाप
लेटी रही। मैं अपनी धुन में धक्के लगाता रहा, पहली बार सेक्स का मजा लूट रहा था, वो भी एकतरफा।
२०-२५ धक्को में
ही मैं झड़ गया और लंड को अन्दर डाले हुए ही लेटा रहा। पांच मिनट बाद उठा और
बाथरूम में जाकर सफाई करने लगा। बाहर आया तो देखा मामी चुपचाप कपड़े पहन रही थी,
मैं पलंग पर जाकर लेट गया। मामी कपड़े पहन कर
वहीं पलंग पर बैठ गई। मैं काफी थक चुका था मेरी आँख लग गई।
शाम को ६ बजे
मेरी आँख खुली, मम्मी आ चुकी थी
मुझे देख कर बोली- अब कैसी तबियत है?
मैं बोला- अब ठीक
है !
रात को ९ बजे
पापा और मामा टूर से लौट आये। अगले दिन रविवार था, सब घर पर ही थे। मैं नीचे गया तो मामा बाहर बैठे अखबार पढ़
रहे थे और मामी रसोई में कुछ बना रही थी। आज वो बहुत खुश दिखाई दे रही थी। मैंने
पास जाकर धीरे से उनकी चूचियों को मसल दिया, वो कुछ नहीं बोली, बस चुपचाप अपने काम में लगी रही। उस दिन के बाद मुझे जब मौका मिलता- मैं कभी
उनकी चूचियों को, कभी गालों को मसल
देता था पर वो कुछ भी नहीं कहती थी।
हफ्ते भर बाद
शनिवार को सुबह मम्मी-पापा को एटा एक शादी में जाना था, मामा एक दिन पहले ही टूर पर चले गए थे। मैं कॉलेज गया और
दोपहर को २ बजे घर लौटा। घर आकर देखा मामी ने फिरोजी रंग की साड़ी पहन रखी थी,
हल्का सा मेक-अप भी कर रखा था, मुझे देखते ही बोली- आ गए संजू ! चलो हाथ मुंह
धोलो, साथ बैठकर खाना खायेंगे।
मैं उनके बदले
हुए रूप को देख कर चकित रह गया क्योंकि जबसे मैंने उनकी चुदाई की थी तबसे वो मुझसे
बात नहीं करती थी। मैं फ्रेश हो कर नीचे आया तो देखा कि खाना भी मेरी पसंद का था।
हमने खाना शुरू किया, मामी बोली- देखो
संजू बुरा मत मानना ! तुम्हारे मामा मुझे तृप्त नहीं कर पाते इसीलिए मैं श्याम से
चुदाई करवाती थी पर उस दिन चाहे तुमने मुझे जबरदस्ती चोदा पर मुझे तुम्हारा लम्बा
और मोटा लंड बहुत पसंद आया और उस दिन के बाद तुम जब मर्जी मुझे छेड़कर चले जाते थे,
मैं तड़फ कर रह जाती थी, अब दो दिन तक मैं तुम्हारी हूँ तुम चाहे जैसे मर्जी मुझे
चोद सकते हो !
इस बीच खाना पूरा
हो चुका, मैं उठते हुए बोला- फिर
देर किस बात की? चलो एक शिफ्ट तो
अभी लगा लेते हैं !
मामी बोली ठीक है,
तुम बाहर वाले दरवाजे का कुंडा लगा कर आओ,
मैं भी ये साफ़ करके आती हूँ।
मैं फ़टाफ़ट
कुंडा लगा कर कमरे में आ गया, इतने में मामी भी
आ गई। देखते ही मैंने उनको अपनी बाँहों में जकड़ लिया, वो भी मुझसे लिपट गई। धीरे-धीरे मैंने उनके और उन्होंने
मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए। उसके बाद मैं लेकर पलंग पर आ गया, हम लोग ६९ की अवस्था में लेट गए। मैं उनकी चूत
को खीर की कटोरी समझ कर चाटने लगा। उन्होंने मेरे लंड को लॉलीपोप की तरह चूसना शुरू
कर दिया। मामी मेरे लंड को चूसती जा रही थी और कहती जा रही थी “चूसो जोर से चूसो, खा जाओ”
काफी देर तक यही
चलता रहा। मामी की चूत ने पानी छोड़ दिया जिसे मैं चाट गया। इतने में मुझे लगा कि
मैं झड़ने वाला हूँ जब तक कुछ कहता मेरे लंड ने पानी छोड़ दिया। मामी सारे रस को
शहद समझ कर चाट गई।
उसके बाद हमने दो दिनों तक ८ से १० बार चुदाई की। उसके बाद भी जब मौका लगता हम लोग अपनी प्यास बुझा लेते थे।
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